अध्याय 3: कॉफी और कबूलनामे
अगले दिन भी बारिश हुई।माया फिर उसी कैफ़े में पहुँची — वही नीला दरवाज़ा, वही खिड़की के पास की सीट, और वही आरव, जो अपने गिटार के साथ बैठा था।जैसे कोई कहानी बस उसी का इंतज़ार कर रही हो।
"फिर मिल गए," माया ने मुस्कुराते हुए कहा।आरव ने जवाब दिया, "शायद बारिश को हम दोनों का साथ पसंद है।"
वेटर दो कॉफी रख गया — एक उसके लिए, एक आरव के लिए।इस बार किसी ने ऑर्डर नहीं दिया था, शायद कैफ़े वाले को अब पता चल गया था कि बारिश और कॉफी — दोनों साथ आते हैं।
कुछ देर दोनों चुपचाप कॉफी पीते रहे।फिर माया ने पूछा,"तुम हमेशा अकेले बैठकर गिटार बजाते हो?"
आरव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,"संगीत मेरा तरीका है बात करने का। कुछ बातें शब्दों में नहीं कही जातीं — बस सुरों में बह जाती हैं।"
माया ने सिर झुकाकर कहा,"मैं भी चित्रों से बात करती हूँ।कभी-कभी लगता है, ब्रश मेरा सबसे अच्छा दोस्त है।"
दोनों हँस पड़े।माया ने खिड़की के बाहर देखा — सड़क पर बच्चे पानी में छलकते हुए खेल रहे थे।"जानते हो, जब मैं छोटी थी, बारिश में भीगना बहुत पसंद था। अब बस देखती हूँ, भीगती नहीं," उसने धीरे से कहा।
आरव ने गिटार के तार छेड़े और बोला,"तो आज भीग लो… कभी-कभी खुद को फिर से महसूस करने के लिए ज़रूरी होता है।"
माया ने उसकी आँखों में देखा —वो पल बहुत साधारण था, पर उसमें एक अजीब-सी गहराई थी।
कॉफी ठंडी हो चुकी थी, पर उनके बीच की बातों में अब गर्माहट थी।
जब माया जाने लगी, आरव ने पुकारा —"माया… कल आओगी?"
माया मुस्कुराई —"अगर बारिश हुई… तो ज़रूर।"
और वो चली गई —पीछे बस कॉफी की खुशबू, अधूरी धुन, और एक नई शुरुआत की आहट छोड़कर।
