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Chapter 4 - अध्याय 4: भीगे हुए पल

अध्याय 4: भीगे हुए पल

अगले दिन दोपहर तक आसमान बिल्कुल साफ था।न बारिश, न बादल — बस धूप और सन्नाटा।माया ने सोचा, "आज तो आरव नहीं आएगा…"फिर भी वो उसी कैफ़े पहुँच गई। शायद आदत बन चुकी थी — उसका इंतज़ार करने की।

वो खिड़की के पास बैठी थी, पर उसकी नज़र बार-बार दरवाज़े पर जा रही थी।पाँच मिनट… दस मिनट… आधा घंटा…फिर अचानक दरवाज़ा खुला — और हवा के झोंके के साथ आरव अंदर आया, बालों से पानी टपकता हुआ।

माया चौंक गई — "तुम भीग गए हो!"आरव मुस्कुराया, "हाँ, बारिश शुरू हो गई है… बस तुम्हारे आने का इशारा मिला।"

बाहर वाकई बारिश शुरू हो चुकी थी — पहले धीमी, फिर तेज़, जैसे किसी फिल्म का सीन।माया ने हँसते हुए कहा, "तुम पागल हो क्या?"आरव बोला, "शायद… लेकिन तुम्हारे जैसी किसी के लिए पागल होना बुरा तो नहीं।"

उसने गिटार नीचे रखा और बोला,"चलो, आज तुम्हें कुछ दिखाता हूँ।"

वो दोनों कैफ़े से बाहर निकले।सड़क पर पानी बह रहा था, हवा में बारिश की खुशबू थी, और समुंदर की लहरें भी जैसे पास आ गई थीं।माया छतरी खोलने ही वाली थी कि आरव ने धीरे से कहा —"छोड़ दो उसे… आज भीगते हैं।"

माया हँसी — "पागल!"पर फिर उसने भी छतरी बंद कर दी।

बारिश की ठंडी बूँदें उनके चेहरों पर गिर रही थीं।आरव ने हाथ बढ़ाया — "डरती हो?"माया ने हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ थाम लिया — "अब नहीं।"

दोनों सड़क पर घूमते रहे, हँसते हुए, बच्चों की तरह पानी में छलकते हुए।कभी-कभी नज़दीकियाँ शब्दों से नहीं, ऐसे ही भीगे हुए पलों से बढ़ती हैं।

जब वो दोनों थक गए, तो समुंदर के किनारे बैठ गए।आरव ने कहा,"जानती हो, ये बारिश हमेशा कुछ नया लेकर आती है। शायद आज मेरे लिए… तुम लेकर आई हो।"

माया कुछ नहीं बोली, बस हल्के से मुस्कुराई।उस पल समुंदर, बारिश, और उनका सन्नाटा — सब एक सुर में घुल गए थे।

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