अध्याय 7: वो खत जो कभी भेजे नहीं गए
रात गहरी थी।खिड़की के बाहर बारिश की बूँदें फिर से गिर रही थीं — धीमी, लेकिन लगातार।माया अपनी मेज़ पर बैठी थी, सामने सफेद कागज़ और एक पुरानी स्याही की बोतल रखी थी।
वो लिखना चाहती थी — लेकिन शब्द जैसे अटक गए थे।कई बार उसने कागज़ पर "प्रिय आरव…" लिखा और फिर मिटा दिया।
फिर उसने गहरी साँस ली और लिखना शुरू किया —
"प्रिय आरव,कभी-कभी लगता है कि तुम बारिश जैसे हो —जब आती है, तो सब कुछ बदल देती है,और जब चली जाती है, तो खालीपन छोड़ जाती है।
तुमसे बात करते हुए जो सुकून मिलता है,वो किसी धुन, किसी रंग में नहीं मिलता।मुझे नहीं पता ये दोस्ती है या कुछ और,लेकिन दिल कहता है… ये कुछ खास है।
अगर कभी तुम दूर चले जाओ,तो याद रखना — ये बारिश तुम्हारा नाम दोहराती रहेगी।"
– माया
उसने खत पूरा किया, पर उसे भेजा नहीं।बस मोड़कर अपने स्केचबुक के बीच रख दिया — जैसे कोई गुप्त तस्वीर छुपा लेती है।
अगले दिन जब वो कैफ़े पहुँची, आरव हमेशा की तरह मुस्कुरा रहा था।"आज कुछ अलग लग रही हो," उसने कहा।माया ने बस सिर हिलाया, "कुछ नहीं… बस नींद कम हुई।"
पर उसके दिल में लहरें उठ रहीं थीं —हर शब्द, हर मुस्कान उस अधूरे खत की तरह,जो भेजा तो नहीं गया,पर महसूस हर रोज़ किया गया।
