अध्याय 10: स्टेशन पर इंतज़ार
शाम का वक्त था। आसमान पर हल्के बादल थे और हवा में अजीब-सी बेचैनी।आर्या के हाथ में वही खत था — अयान का आख़िरी लिखा हुआ।उसने बार-बार पढ़ा, हर बार उम्मीद के साथ कि शायद किसी पंक्ति में "वापस आऊँगा" लिखा मिल जाए।
वो स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर खड़ी थी।लोगों की भीड़ थी, आवाज़ें थीं, लेकिन उसके अंदर सिर्फ़ सन्नाटा था।हर आती ट्रेन पर उसकी नज़र जाती, दिल धड़कता, पर फिर वही निराशा लौट आती।
धीरे-धीरे लाउडस्पीकर पर आवाज़ आई —"दिल्ली से आने वाली ट्रेन अब प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर पहुँचेगी…"
उसका दिल ज़ोर से धड़क उठा।वो आगे बढ़ी, आँखें भीड़ में उसे ढूँढ रही थीं।हर चेहरे में उसे वही मुस्कान दिखती — जो कभी उसके हर दिन की शुरुआत थी।
ट्रेन रुकी… लोग उतरने लगे…पर अयान नहीं था।
आर्या की आँखों में आँसू भर आए।वो एक बेंच पर बैठ गई, आसमान की ओर देखा और बोली —"शायद कुछ कहानियाँ स्टेशन तक तो पहुँचती हैं… लेकिन मंज़िल तक नहीं।"
बारिश फिर शुरू हो गई थी।उसने आँसू छुपाने की कोशिश की, पर बारिश और आँसू का फर्क अब कोई नहीं समझ सकता था।
तभी अचानक, पीछे से एक आवाज़ आई —"आर्या…"
वो आवाज़... वही जो उसके दिल की हर धड़कन में बसी थी।वो मुड़ी —और सामने अयान खड़ा था, भीगा हुआ, लेकिन मुस्कुराता हुआ।
आर्या की आँखें फैल गईं, होंठ काँपे, पर शब्द नहीं निकले।अयान ने बस इतना कहा —"वक़्त तो लग गया, पर लौट आया हूँ…"
बारिश तेज़ हो चुकी थी।इस बार दोनों भीग रहे थे — पर अब कोई नहीं भागा। ❤️
