अध्याय 1: पुनर्जन्म का वचन
कभी वो रानी थी, चाँद-सी उजली,
जिसकी हँसी से महल भी खिल उठते थे।
मगर धोखा मिला — अपने ही ने दिया,
जिसे उसने ताज पहनाया, उसी ने जहर पिलाया।
रात के अंधेरों में जल गई उसकी साँसें,
पर उसकी रूह नहीं मरी,
वो राख में बदली,
और वहीं लिया उसने बदले का वचन —
"अब मेरा प्यार नहीं, मेरा क्रोध राज करेगा!"
हज़ार साल बाद, जब चंद्र ग्रहण हुआ,
राख का तिलिस्म टूटा —
और वो लौटी…
काली आँखों में बिजली, होंठों पर मुस्कान,
और दिल में सिर्फ एक नाम — धोखेबाज़ राजा का अंत!
